कभी,
दुःख, दर्द से परे
,
कभी,
स्नेह, मोह से
परे,,
सांस
ले तू सुख चैन की,
बिना
किसी से कभी डरे ,
हिम्मत और
विश्वाश
,
कभी
खुद में जगाता
है
नसीबा,
कभी
हँसाता
तो
कभी
रुलाता
है
नसीबा
!!
है
दिलाता
आस
कभी,
और
कर
देता
उपहास
कभी,
कभी
स्वाद
चखलाता है
जीत
की
,
और हार का
रसपान
कभी,
उपकारों
के
बोझ
तले,
कभी हमें
दबता
है
नसीबा,
कभी
हँसाता
तो
कभी
रुलाता
है
नसीबा !!
है
कर्त्तव्य,
करना
कर्म
को,
चाहे
जो
कुछ
भी मर्म हो,
यह
जीवन
है
इसे
जीना
है,
भी
चाहे
जितनी
लज्जा
शर्म
हो,
अपने
कर्मो
से
ही
खुद
को भी,
कर्म
प्रधान
बनता
है
नसीबा,
कभी हँसाता
तो
कभी
रुलाता
है
नसीबा !!
आये है
और
जाएंगे
हम वैसे,
जो
नसीबों
में
लिखा
हो
जैसे,
रह
जाएँगी
यादें
बस तिल तिल,
धरी
हुयी
जैसे
के
तैसे,
बांध
जीवन
और
मरण
को,
ले साथ आता है
नसीबा,
कभी
हँसाता
तो
कभी
रुलाता
है
नसीबा !!
धरा
के
हर
इस
एक
कोर
पे,
जीवन
के
हर
छोर
छोर
पे,
हर
राहें हर मोड़
मोड़
पे,
गलियों
गलियों
डोर
डोर
पे,
और कई ऐसे रंग,
दिखलाता
है
नसीबा !
कभी
हँसाता
तो
कभी
रुलाता
है
नसीबा !!
अमोद ओझा (रागी)
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