सोमवार, 6 अप्रैल 2015

!! यादों की अभिलाषा !!



यादों के समंदर में,
एक तिनका उड़के गिर पड़ा !
लहरों  के संग डूबते लड़ते,
किनारे पे जा कही अड़ा !!

था खड़ा वह सोच रहा बस
किस ठौर मुझे अब जाना है !
या युही बस डूबते लड़ते
समंदर पार हो जाना है   !!

थी अभिलाषा उड़ने की उसको
पर मन अब भी विचलित था !
 जाऊ कहाँ मैं क्या करू बस,
सोच यही वह चिंतित था   !!

थी नहीं उसे कुछ सूझ बुझ,
पर लड़ना उसका निश्चित था !
किया था जो प्रण उसने भी,
पाना उसे सुनिश्चित था !!

दृढ इरादे, हिम्मत  भर  खुद  में 
चिर  समंदर  की लहरों  को !
जा लड़ा वह प्रेम प्रयाग से,
जहाँ जीत उसे सुनिश्चित था !!

पूरी हुई अभिलाषा उसकी,
और मन उसका उन्मुक्त हुआ !
लड़ते लड़ते जीत मिली पर,
डूब सागर में वह विलुप्त हुआ !!


                 अमोद ओझा (रागी)